Saturday, March 26, 2016

एक शेर जो हमसे नहीं होगा

किसी ने कहा एक शेर पेश कर दो
उस परी के नाम दो लफ्ज केह दो
बेहद ही परेशानी में डाल दिया आप ने जनाब
उस मूरत पर लफ्ज हमें लिखना हो यही है ख़िताब

चंद लफ्जो में कैसे करूँ उसको बयां
उस मुस्कराहट को लफ्जो में पेश करू मैं कैसे यहा
नशीली आँखों की नजाकत को शब्दों की बेडियो में कैसे कैद करूँ?
लहराती जुल्फों से नजर हटें तब जाकर कहिं कलम उठलु

आपकी फरमाइश हमसे पूरी न होगी..
पर खुदा की खिदमत से वो ऐसे ही होगी..
जो मेरे कलम की धार से कभी काबू न होगी

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